File:Hand line reading.jpg

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हिन्दी: जातक का हस्त रेखा का परिक्षण करने के पूर्व सनातन नियम के विचार से अवगत करना चाहूॅगा। हिन्दु धर्म के अनुसार राहु केतु को छाया ग्रह माना गया। इस का रहस्य वैज्ञानिक तर्क के कसौटी पर भी समझने कि आवश्यकता है जिसके बारे में व्याप्त रहस्य को आपकें सामने रखना चाहूॅगा। जैसा कि आप लोग जानते है कि सूर्य और पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाने के कारण सूर्य ग्रहण होता है और सूर्य और चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाने से चन्द्र ग्रहण होता है। अब विज्ञान इसी तर्क को मानता आ रहा जो कि सत्य है अर्थात सूर्य के किरणों के अल्ट््रवालेट किरण को नंगे ऑखो से देखने से आंखो को नुकसान हो सकता है। सनातन धर्म में इस घटना को राहु केतु का संज्ञा दिया गया और प्रचलित कथा के अनुसार ग्रहण का अर्थ राहु और केतु के द्वारा सूर्य और चन्द्रमा के निगल जाने के कारण यह घटना घटित होते है। हर एक ग्रहों का अपना गुरूत्व बल है जिस प्रकार चुम्बक के बारे हम जानते कि उसके अन्दर लौह धातु को अपने तरफ खीचने का कार्य करता है किन्तु लौह और चुंबक के बीच में कौन सा बल कार्य करता इसे देखना भी संभव नहीं है, इसके बारे में अगलें किसी अंक में विस्तृत चर्चा करेगें। आओ हम पहले इस हथेली के बारे जानकारी लें और हथेली से होने वाली घटना का परिणाम जान सके।

नीले रंग की रेखा जो कि तर्जनी अंगुली के नीचे और अंगूठा के मध्य भाग से प्रारम्भ होकर मणिबंध तक जाता है जिसे समान्य तौर पर लोग जीवन रेखा के नाम से जानते हैं। जैसा कि आप इस हथेली में देख रहे कि प्रारम्भ अवस्था में यह तीन भागों में विभक्त होकर अलग अलग जगहो से निकल कर 5 वर्ष आयु में एकाकार होकर आगे की ओर चल पड़ा है जिसका तात्पर्य यह है कि जातक के जीवन के प्रारम्भ में संकटपूर्ण रहा होगा।ऐसा जातक की प्राण में वायु अग्नि जल तत्च की मात्रा असंतुलित होने के कारण निमोनिया व सर्दी से ग्रस्त रहा होगा। शरीर से काफी मजबूत और इनका कंधा काफी चौड़ा होता है और किसी भी हालात में आपकी शारीरिक बनावट काफी अच्छी होती है और चेहरा चौकोर आंखे लुभावनी और होठ सुंदर होगा हैं। जीवन रेखा के आगें बढने पर 12 वें वर्ष की आयु के आसपास जातक के जीवन दुर्घटना घटित हुआ होगा जिसके कारण हड्डी टुटने जैसी समस्या का सामना करना पड़ा होगा किन्तु ऐसे जातक के जीवन की 18 वें व19 वर्ष में घटित घटना का जीवन को परिर्वतित कर दिया होगा और जीवन को एक नई दिशा प्रदान किया होगा। जातक के जीवन रेखा दो भागो विभक्त होकर मणिबंध की ओर चला गया है ऐसे जातक एक ही जीवन को दो पहलू में जीवन जीता है अन्दर और बाहर के दोनो रूप अलग अलग होतें है कथनी और करनी में भी अन्तर आ जाता हैं। अगॅूठे उपरी भाग से शुरू होकर नीले से पीला रंग होकर के हथेंली के मध्य आकर समाप्त हो गया है जो जातक को दिमाग के मामले में तेजी प्रदान करता है केतु क्षेत्र के प्रभावित होने के कारण कुशाग्र बु़िद्ध प्रदान करता है और साथ-साथ जातक के मन को शांति प्रदान करता है कभी कभी ऐसे जातक के अन्दर काफी उथल पुथल होता रहता किन्तु वो बाहर से शान्त नजर आतें है। इस जातक के हथेली में दो घर बार का योग है जातक के आयु 80 वर्ष का होगा। जातक का भाग्योदय का प्रबल योग 33 वर्ष के पश्चात भाग्योदय अधिक प्रबल होगा। आपकें हथेली में शनि पर्वत दबा हुआ अर्थात शनि स्वगृही स्थान में जन्म कुंडली के हिसाब से प्रदर्शित हो रहा है अतः वर्तमान में आप पर शनि की साढें साती स्थिति निमिॅत कर रहा है कुंडली हिसाब से आप का जन्म वृश्चिक लग्न का है और दोनो के अध्ययन करने पर आपको अभी नाक और नाक की हड्डियों, हिमोग्लोबीन और जननांग से सम्बंधित रोगों से पीड़ा हो सकती है। इसके अलावा आपको चरित्रिक पवित्रता बनाये रखे अन्यथा प्रजनन और पेशाब की समस्या, जिगर और गुर्दे के रोग भी परेशान कर सकते है। आपको बवासीर और अल्सर जैसे रोग की दिक्कतें दे सकते है। आप कभी कभी अपने करीबी पर शंका और उनके प्रति ईर्ष्या रखते हैं। आपकी भावनात्मक शक्ति आपको मनचाहे क्षेत्रों में अपना कैरियर बनाने में काफी मदद करती है। आप स्वभाव से सख्त, जिद्दी, घमंडी और शांत होते है। आप अपनी जिंदगी अपने अंदाज से जीना चाहते हैं और उससे कम पे आपको कुछ भी स्वीकार नहीं। आप अपने व्यावसायिक जीवन में जिद्दी स्वभाव के एवंस्वयं निर्णय लेने वाले हैं। आप अनुकरण करने वाले की बजाय नेतृत्व करने वाले होंगे। आपको जीवन में 36 वें वर्ष की आयु में महत्वपूर्ण सुनहारा अवसर आयेगा जिसे आप खोना नही चाहेंगें। आप का ह्दय रेखा का काफी अच्छा स्थिति में है जो कि एक शिखा शनि पर्वत तो दूसरा शिखा गुरू पर्वत से प्रारम्भ हो रहा है गुरू पर्वत का उन्नत होना आपके हथेंली यह संकेत देता है कि गुरू में अग्नि तत्व का समावेश होकर समाज में नेतत्व का गुण प्रदान करता है और साथ ही साथ सूर्य पर्वत काफी दृढ स्थिति में है किन्तु सूर्य रेखा को गुरू पर्वत से निकल रेखा जो कि लाल रंग में वर्णित है काट रहा इसका मतलब यह है कुछ आपको अपने जीवन काल में बदनामी का सामना करना पड़ सकता है आपके मान सम्मान को ठेस पहुॅचा सकता है किन्तु गुरू वलय रेख सूर्य पर्वत तक जाने का तात्पर्य यह है कि आपको गुरू नेतृत्व का गुण प्रदान करता है और आपको राजनीति में राजयोग कारक पद पदासीन कर सकता किन्तु आपका यही सलाह दे सकता हॅू कि आप अपने व्यक्तित्व में चरित्रिक शुद्धता बनाये रखें अन्यथा शनि के दंड का भोग भोगना पड सकता है जिसके कारण गिरने में देर नही लगेगा। इसलिए धैर्य रखें और सही समय की प्रतीक्षा करें। इस दौर को सीखने का समय समझें और कङी मेहनत करें, परिस्थितियाँ स्वतः सही होती चली जाएंगी। इस समय व्यवसाय में कोई भी बङा खतरा या चुनौती न मोल लें। आने वाल समय कार्य का परिणाम धीरे-धीरे और प्रायः हमेशा विलम्ब से प्राप्त होंगे। यह काल-खण्ड खतरे को भी दर्शाता है, अतः गाङी चलाते समय विशेष सावधानी अपेक्षित है। यदि संभव हो तो मांसाहार और मदिरापान से दूर रहकर शनि को प्रसन्न रखें। अन्यथा आप पर शनि दंण्ड लागू हो सकता है अतः आप समझदारी से काम लें, तो घरेलू व आर्थिक मामलों में आने वाली परेशानियों को भली-भांति हल करने में आप सफल होकर रहेंगे। अभी आपका विपरीत समय चल रहा है ऐसी परिस्थितियों में प्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास प्राप्त करने का प्रयत्न करें ताकि आने वाला समय में भारी व्यय होने की भी संभावना को कम किया जा सकें। अब समय अभाव के कारण अपनी लेखन को यही विश्राम देना चाहॅूगा। जय मॉ शारदा। जय गुरूदेव बाबा कल्याण दासजी की

पंडित अवधेश कुमार चतुर्वेदी
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Source Own work
Author Pandit AwadheshChaturvedi

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